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गरीब की झोपड़ी पर ही #Welcome लिखा हुआ दिखता है अमीर के गेट पर तो कुत्तों से सावधान ही लिखा मिलता है इसकी मुख्य वजह क्या हो सकती है आपके अनुसार

स्वागत तो गांवो में ही होता है साहब शहर में तो सिर्फ फॉर्मलिटी होती है, जब कोई मेहमान आता है तो घरवाले अतिथि सत्कार में ऐसे जुट जाते है जैसे कोई भगवान आया हो, शहर में जब कोई मेहमान आता है तो बच्चे अलग रूम में पत्नी किचिन में और साहब फोन पर व्यस्त हो जाते है ऐसा लगता है जैसे कोई शैतान आया हो सब गुमसुम से हो जाते है

गांव में आते ही पानी चाय और भोजन बिना पूछे आ जाता है शहर में आप पानी पियेंगे, चाय लेंगे अच्छा तो अब खाना खाएंगे ऐसे पूछने से तंग आकर शर्मीले स्वभाव का इंसान तो मना ही कर देता है नही साहब मैं अभी खाकर ही आया हूँ चाहे वो सुबह से ही भूखा हो

जब किसानों के खेतों पर विजिट करने जाता था या जब गांव में जाता था तो लोग पूछते नही थे सीधा भोजन की थाली हाथ मे लेकर आ जाते थे मैं भी उनके साथ खेत की मेड पर पेड़ की छाया में बैठकर खूब आनंद लेता था खेतो में भोजन का स्वाद और भी लाजबाब हो जाता है

चुनावो ने गांव के भाईचारे प्यार प्रेम और संबंधो को काफी हद तक गहरी छती पहुचाई है अन्यथा हमे तो बचपन मे ये ही मालूम नही चलता था कि हम रोटी किसके घर खा रहे है जहां भी बनती हुई दिख जाती थी वहीं खा पीकर दिन भर खेलने कूदने में लग जाते थे

आज वो सब गांवो से भी गायब सा होने लगा है फिर भी शहर की तुलना में गांव बहुत प्यार है इसीलिए कहते है शहर की दवा और गांव की हवा बराबर काम करती है

आइये गांव लौट चलते है

🙏🙏🙏मनीष कुमार मीना 🙏🙏🙏
गरीब की झोपड़ी पर ही #Welcome लिखा हुआ दिखता है अमीर के गेट पर तो कुत्तों से सावधान ही लिखा मिलता है इसकी मुख्य वजह क्या हो सकती है आपके अनुसार स्वागत तो गांवो में ही होता है साहब शहर में तो सिर्फ फॉर्मलिटी होती है, जब कोई मेहमान आता है तो घरवाले अतिथि सत्कार में ऐसे जुट जाते है जैसे कोई भगवान आया हो, शहर में जब कोई मेहमान आता है तो बच्चे अलग रूम में पत्नी किचिन में और साहब फोन पर व्यस्त हो जाते है ऐसा लगता है जैसे कोई शैतान आया हो सब गुमसुम से हो जाते है गांव में आते ही पानी चाय और भोजन बिना पूछे आ जाता है शहर में आप पानी पियेंगे, चाय लेंगे अच्छा तो अब खाना खाएंगे ऐसे पूछने से तंग आकर शर्मीले स्वभाव का इंसान तो मना ही कर देता है नही साहब मैं अभी खाकर ही आया हूँ चाहे वो सुबह से ही भूखा हो जब किसानों के खेतों पर विजिट करने जाता था या जब गांव में जाता था तो लोग पूछते नही थे सीधा भोजन की थाली हाथ मे लेकर आ जाते थे मैं भी उनके साथ खेत की मेड पर पेड़ की छाया में बैठकर खूब आनंद लेता था खेतो में भोजन का स्वाद और भी लाजबाब हो जाता है चुनावो ने गांव के भाईचारे प्यार प्रेम और संबंधो को काफी हद तक गहरी छती पहुचाई है अन्यथा हमे तो बचपन मे ये ही मालूम नही चलता था कि हम रोटी किसके घर खा रहे है जहां भी बनती हुई दिख जाती थी वहीं खा पीकर दिन भर खेलने कूदने में लग जाते थे आज वो सब गांवो से भी गायब सा होने लगा है फिर भी शहर की तुलना में गांव बहुत प्यार है इसीलिए कहते है शहर की दवा और गांव की हवा बराबर काम करती है आइये गांव लौट चलते है 🙏🙏🙏मनीष कुमार मीना 🙏🙏🙏
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